1973 का वह दौर, जब विश्व में तेल की समस्या उत्पन्न हो गई थी, अमेरिका अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध में था और भारत 1974 में स्माइलिंग बुद्धा के जरिए अपने पहले परमाणु परीक्षण की तैयारी कर रहा था। उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने तेल समस्या को लेकर सऊदी सुल्तान फैज़ल-बिन-अब्दुलअज़ीज़-अल-सौद को सत्ता से बेदखल करने की अपनी नीति से इतना डरा दिया कि वैश्विक तेल समस्या भी हल हो गई, अमेरिका ने सऊदी अरब की सुरक्षा का जिम्मा लेने के साथ ही उसे अपने गुट में भी शामिल कर लिया और सबसे महत्वपूर्ण तेल-गैस के व्यापार में सिर्फ डॉलर के इस्तेमाल ने 1974 में इसे दुनियां की सबसे मजबूत करेंसी बना दिया। इसी दौरान सबसे विकसित और औद्योगीकृत देशों यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान ने एक ऐसे समूह की कल्पना की, जहां वे अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा के लिए एक मंच तैयार कर सकें। वह समूह था जी6, जिसकी पहली मीटिंग 1975 में फ्रांस के रैंबोइलेट शहर में हुई। तत्पश्चात 1976 में कनाडा को भी इसमें शामिल करके इसे जी7 बना दिया गया। अब यह एक ऐसा समूह बन गया जिसमें न सिर्फ दुनिया के बड़े औद्योगिक और विकसित देश शामिल थे बल्कि वे विश्व के सबसे बड़े निर्यातक, सबसे ज्यादा गोल्ड रिजर्व रखने वाले, न्यूक्लियर एनर्जी के सबसे बड़े उत्पादक, संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े दानदाता और वैश्विक जीडीपी में 45% का योगदान रखने वाले देश बन गए थे। अन्ततः एक ऐसा मोड़ भी आया, जब 1991 में सोवियत संघ के 15 टुकड़ों में टूटने के बाद शीत युद्ध खत्म हुआ, तब 1997 में रूस को इस समूह में शामिल करके इसे जी8 बना दिया गया।

दो दशकों बाद यूरोपियन यूनियन और नाटो में शामिल देशों को कमज़ोर करने के उद्देश्य ने रूस को इस समूह के आंखों की किरकिरी बना दिया, जिससे समूह में शामिल यूरोपीय देश उससे दूरी बनाने लगे। अन्ततः ये मौका भी रूस ने ही दिया, जब 2014 में उसने यूक्रेन के क्रीमिया प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया, तब उसे समूह से बाहर करके फिर से इसे जी7 बना दिया गया। फिलहाल इस समूह में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, या यूं कहूं कि जब से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति बने हैं, उन्होंने अमेरिका फर्स्ट की नीति से जी7 की आर्थिक वृद्धि रोक दी है। इसी का नजारा जून 2018 में कनाडा के क्यूबेक में हो रहे समिट में दिखा, जब कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ नाफ्टा को लेकर हुए मतभेदों पर ट्रंप बीच में ही समिट छोड़कर वापस आ गए। तत्पश्चात ऐसा ही कुछ 2019 में फ्रांस के बियारेट्ज़ शहर में हुए समिट में दिखा, जब जर्मनी और अमेरिका के बीच नाटो के रक्षा ख़र्च पर मतभेद पूरी तरह उभर कर आ गए और जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कुर्सी में बैठाकर समझाने वाली फोटो ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। आज स्थिति यह हो चुकी है कि जब 2020 में इस समूह की मीटिंग अमेरिका में होने जा रही है, तब अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे आउटडेटेड करार देकर इसकी प्रासंगिकता पर ही सवाल उठा दिया है। लेकिन कुछ और भी बातें डोनाल्ड ट्रंप ने कही है, जिसपर अमल करके जी7 को फिर से जिंदा करने की योजना पर बल दिया जा सकता है। और वह है भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और रूस को इस समूह में जोड़कर इसका विस्तार करना।

जी7 के नजरिए से बात करें तो क्या भारत जैसे विकासशील देश को इस विकसित समूह में सदस्यता मिल सकती है? साथ ही क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पास इतने अधिकार हैं कि वे अकेले ही भारत या किसी अन्य को इसका सदस्य बना सकें? हाल ही में यूरोपियन यूनियन के प्रवक्ता ने कहा था कि मेजबान होने के नाते यकीनन डोनाल्ड ट्रंप भारत सहित चारों देशों को निमंत्रण दे सकते हैं लेकिन सदस्यता देने का अधिकार अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति के पास नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आखिर डोनाल्ड ट्रंप भारत को इसमें क्यों शामिल करना चाहते हैं जबकि हम तो ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया की तरह पूर्ण विकसित और औद्योगिकृत देश भी नहीं हैं। इसका सबसे प्रमुख कारण है जी7 की गिरती लोकप्रियता और चीन, भारत एवं ब्राजील जैसे विकसित लेकिन विकासशील देशों का आर्थिक जगत में उभार। आज परिणाम यह है कि वैश्विक जीडीपी में जी7 का शेयर घटकर 40% जबकि चीन, भारत और ब्राजील की वजह से जी20 का शेयर बढ़कर 80% पहुंच चुका है। इसलिए ट्रंप प्रशासन ने ऐसी योजना बनाई है, जिससे सांप भी मरे और लाठी भी मजबूत हो जाए। कोरोनावायरस और व्यापार युद्ध के कारण ट्रंप चीन को इस समूह से दूर रखकर दंड देना चाहते हैं जबकि भारत को शामिल कर अपने गुट में नजदीक लाने के साथ विकासशील देशों की सूची से हटाना चाहते हैं, क्योंकि इस सूची में रहने के कारण भारत और चीन दोनों को विश्व व्यापार संगठन से अनेकों छूट मिलती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति कई बार भारत को टैरिफ किंग कह चुके हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने पहले जीएसपी फिर नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भारत आने से पहले यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव से भारत को विकासशील देशों की सूची से बाहर कर दिया। ट्रंप कहते हैं कि वैश्विक जीडीपी में भारत का व्यापार 0.5% से ज्यादा है, साथ ही जी20 जैसे आर्थिक समूह का सदस्य भी, तो वह विकासशील कैसे है? हालांकि ट्रंप के बर्ताव से निकटतम सहयोगी कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको और यूरोपियन यूनियन भी नहीं बच पाए हैं। फिलहाल जी7 एक राजनीतिक समूह बनकर रह गया है, इसलिए ट्रंप अपने राजनीतिक करियर को बचाने और खुद को एक मजबूत नेता दिखाने के लिए एशिया की सभी शक्तियों को अपने करीब लेकर चीन को रोकना चाहते हैं। इसमें रूस को शामिल करने का मकसद भी बस इतना ही है कि चीन को दबाव में लाने के दौरान रूस अमेरिका का विरोध ना करें।

भारत के संदर्भ में बात करें तो 2021 में ब्रिटेन में होने वाले समिट में इसके विस्तार को अंतिम रूप दे दिया जाएगा, और वर्तमान चीन की आक्रामकता देखकर निश्चित ही सभी देश इसे ज्वॉइन भी कर लेंगे, लेकिन रूस के फिर से शामिल होने पर संशय बरकरार है क्योंकि ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी ने खुलकर इसपर विरोध जताया है। बहरहाल, जी7 से जुड़ना भारत के लिए फायदेमंद और नुकसानदेह दोनों हैं फायदेमंद इसलिए क्योंकि इस एलीट क्लब में जुड़ने से विश्व बिरादरी में भारत की साख बढ़ने के साथ ही इकोनॉमिक अपुर्च्यूनिटी मिलेगी। इसके अलावा जी20 को छोड़कर भारत के पास कोई भी बड़ा मंच नहीं है जिसमें वह अधिकतर वैश्विक नेताओं से मिल सके। जबकि नुकसानदेह इसलिए क्योंकि इसमें शामिल होने के बाद हमें उन मुद्दों पर भी अपनी राय रखनी पड़ेगी जिसपर अबतक भारत सामान्यतः तटस्थ रहते आया है। चाहे वह रूस का क्रीमिया हो, चीन का तिब्बत हो, हांगकांग या ताइवान, क्योंकि संयुक्त घोषणापत्र से जो भी निर्णय निकलकर आएगा, उसे ही भारत का स्टैंड भी माना जाएगा। दूसरे नजरिए से देखें तो भारत अभी चीन और रूस के साथ ब्रिक्स, एससीओ, जी20 के अलावा आरआईसी में सहभागिता करता है इसलिए इसमें जुड़ने के बाद तीनों महाशक्तियों को एकसाथ बैलेंस कर पाना भारत के लिए आसान नहीं होगा। सबसे बड़ा नुकसान यह होगा, कि इसमें कभी हमारे मामलों पर भी चर्चा की जा सकती है, फिर चाहे वह अल्पसंख्यकों के मुद्दे हों, कश्मीर या मानवाधिकारों के बारे में। अंत में अगर भारत को सिर्फ राजनीति करनी है तो संयुक्त राष्ट्र का मंच ही सबसे अच्छा है और आर्थिक नजरिए से कार्य करना है तो जी20 सबसे अच्छा रहेगा। लेकिन भारत वैश्विक साख बढ़ाने के साथ अगर तीनों वैश्विक शक्तियों में तालमेल बैठा लेगा तो यकीनन भारत को इस समूह में जुड़ना फायदेमंद होगा। इसलिए हमें यह देखना पड़ेगा कि भारत कैसे डोनाल्ड ट्रंप के जाल से बचते हुए जी7 से जुड़कर अपने हितों को अवसर में बदल पायेगा।

27 June 2020

@Published :

1. #NavPradesh_Newspaper, 29 June 2020, Monday, #Raipur edition, P. 06 👉https://www.navpradesh.com/epaper/?date_id=29-06-2020 

2. #ThePioneer_Newspaper, 29 June 2020, Monday, #Raipur Hindi edition, P. 06 👉https://www.dailypioneer.com/uploads/2020/epaper/june/raipur-hindi-edition-2020-06-29.pdf 

3. #AmritSandesh_Newspaper, 29 June 2020, Monday, Raipur edition, Page 04 👉🏻https://www.amritsandesh.com/eportal/img/gallery/1593354277/r4-.jpg 

4. #Apandera News, 28 June 2020, Sunday, Digital edition 👉🏻http://apanderanews.com/831/

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