वैसे तो दुनियाँभर के सभी सदस्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र के 74वें आमसभा को संबोधित किया है लेकिन किसी देश के साथ ऐसा पहली बार ही हआ है कि जब अमेरिका ने ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी के भाषण के बाद उसके समस्त राजनयिकों और अधिकारियों तथा उनके परिजनों की अमेरिकी यात्रा पर नये रूप में एक और प्रतिबंध लगा दिया। यह अमेरिका की एक और सबसे बड़ी हताशा थी कि ईरान न्यूक्लियर डील से अलग होने और हाल ही में ह्यूस्टन में 59 हज़ार भारतीय-अमेरिकियों के हाऊडी मोदी कार्यक्रम में शामिल होना भी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को महाभियोग प्रक्रिया चलने से नही बचा सका। देखा जाए तो यह सत्र अनेकों देशों के लिए परेशानी में ही गुजरा। अमेरिका यूक्रेन एवं ईरान से परेशान रहा, तो यूक्रेन रूस से और रूस अमरीका एवं चीन से। भारत पाकिस्तान, तुर्की, चीन और मलेशिया से परेशान रहा तो पाकिस्तान अमेरिका और भारत से। तुर्की भारत, अमेरिका और सायप्रस से, दक्षिण कोरिया चीन के साथ साथ जापान एवं अमेरिका से परेशान रहा और चीन अमेरिका, तुर्की एवं पाकिस्तान से। हमें क्या मिला उससे पहले यह बताना जरूरी था कि किसने किसने क्या खोया।

अगर बात भारत की करें तो हमने प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से बहुत कुछ हासिल किया है जो कि भविष्य में मील का पत्थर साबित होंगी। भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि संयुक्त राष्ट मख्यालय में खद के द्वारा 1 मिलियन डॉलर की लागत से बनाए गए गाँधी सोलर पार्क की स्थापना करना था जिसमे 193 पैनल्स लगाए गये हैं जो संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों को रेखांकित करता है और भारत की स्वच्छ ऊर्जा नीति का प्रदर्शन। साथ ही गाँधी पीस गार्डन भी भारत द्वारा स्थापित किया गया। इसके अलावा मेरे विचार से जो दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही, वह थी पहली भारत-कैरीकॉम समिट। यानी 15 कैरेबियन देशों का समूह जिनमें एंटीगुआ, बहामास, बेलिज़, डोमिनिका, हैती, ग्रेनेडा, मोंटसेरात्त, गुयाना, सेंट लूसिया, सेंट विन्सेन्ट, सूरीनाम, सेंट किट्स, जमैका, बरबूड़ा और त्रिनिदाद एंड टोबैगो शामिल हैं इनके साथ प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार मीटिंग की और इन्हें 14 मिलियन डॉलर यानी लगभग 100 करोड़ अनुदान साथ ही 150 मिलियन डॉलर यानी लगभग 1000 करोड़ रुपये की लाइन ऑफ़ क्रेडिट के रूप में लोन दिया। वैसे ये सभी देश हमसे बहुत दूर स्थित है और हमारा व्यापार भी उनसे बहुत कम लगभग 17.5 मिलियन डॉलर है लेकिन उनसे संबंध बढ़ाने के पीछे सबसे बड़ा कारण है संयुक्त राष्ट्र और चीन। क्योंकि जब से 1973 में कैरीकॉम की स्थापना हुई है इन सभी देशों ने विश्व के हर मंच पर एकसमान और एक साथ वोट किया है इसलिए भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए इस ग्रुप का सपोर्ट चाहता है ताकि उसे 15 वोट एक साथ मिल सकें। दूसरी चीज है चीन, जिसने इन देशों में बिलियन डॉलर्स का निवेश कर रखा है, साथ ही एंटीगुआ, डोमिनिका, ग्रेनेडा, त्रिनिदाद एंड टोबैगो जैसे देश तो चीन के बेल्ट रोड परियोजना से भी जुड़ चुके हैं, इसलिए यह ज़रूरी था कि भारत इसने संबंधों का विस्तार करे और इसी कड़ी में हमने उन्हें इंटरनेशनल सोलर अलायन्स और कॉइलेशन फ़ॉर डिज़ास्टर रेज़ीलिएन्स इंफ्रास्ट्रक्चर समुहों से भी जुड़ने के लिए आमंत्रित किया है।

तीसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रशान्त महासागर के 12 द्वीपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ हुई मीटिंग थी जिनमे फ़िजी, तुवालू, समोआ, सोलोमन आइलैंड, मार्शल आइलैंड, नौरू, पलाऊ, माइक्रोनेशिया, टोंगा, वानुआतु, पापुआ न्यू गिनी और किरिबाती शामिल हैं। इनसे भी भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए सहयोग पाना चाहता है साथ ही अपने एक्ट ईस्ट पालिसी के तहत इनके विकास को प्राथमिकता देता है, यहाँ मोदी जी ने इन सभी की ओर से दुनियाँ को वैश्विक तापमान में कमी लाने के प्रयासों पर तीव्रता लाने का आह्वान किया, ताकि इन सभी देशों को जलमग्न होने से बचाया जा सके। चौथी महत्वपूर्ण उपलब्धि अमेरिका से 2.5 बिलियन डॉलर यानी लगभग 18000 करोड़ की एलएनजी डील थी जिसके तहत 40 सालों तक अमेरिका हमें रोज़ाना 50 लाख मीट्रिक टन एलएनजी देगा।

मोदी जी की बात करें, तो उन्हें इस दौरे से जो मिला है वो अब तक किसी और भारतीय नेता को नही मिला। और वो है, 59 हज़ार भारतीय-अमेरिकियों के बीच राष्ट्रपति ट्रम्प की मौजूदगी में विश्वभर में अधिकाधिक लोकप्रियता और फादर ऑफ द नेशन की उपाधि, साथ ही बिल एंड मिलिंडा गेट्स फॉउंडेशन की तरफ से ग्लोबल गोलकीपर स्वच्छता पुरस्कार और संयुक्त राष्ट्र आमसभा में एक मंझे हुए वैश्विक लीडर के तौर पर भाषण पर तालियाँ। जिस तरह उन्होंने सिंगल यूज़ प्लास्टिक, क्लाइमेट चेंज, बुद्ध एवं गांधी के अहिंसा और स्वच्छ सौर ऊर्जा के लिए के लिए भारत के नेतृत्व की जो बात कही वह लाजवाब था, हालांकि मैं ये समझता हूँ कि उनके लगभग सभी बातों को ज़्यादातर भारतीय पहले ही विभिन्न मंचों पर सुन चुके हैं। लेकिन हमें जानना होगा, कि इसका दूसरा पहलू भी है। क्योंकि पाकिस्तान का तो पता था मगर तुर्की, मलेशिया और चीन ने जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाया, यह वाक़ई भारत को परेशान करने वाला कदम था इसके अलावा ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी, ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कन्ट्रीज तथा अमेरिका से कोई व्यापारिक सौदा नहीं होने के कारण उनके दक्षिण एशिया में उप-विदेशमंत्री ने कश्मीर प्रतिबंध हटाने की जो बात कही, वह भी अप्रत्याशित रहा। लेकिन भारत ने जो पलटवार किया है उससे निश्चित ही इन सभी देशों के पसीने छूट गए होंगे। सबसे पहले तो जैसे ही मोदी जी सायप्रस के राष्ट्रपति निकोस अनास्तासियादेस से मिले, तुर्की और सायप्रस दोनो ही देशों के हेडलाइंस बन गए। क्योंकि वहाँ मोदी ने सायप्रस की संप्रभुता, अखण्डता और स्वतंत्रता की समर्थन किया, जिससे सायप्रस तो खुश लेकिन तुर्की दुखी हो गया। कारण यह है कि 1974 से ही तुर्की ने सायप्रस के एक चौथाई हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा है। उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी अपने समकक्ष ग्रीस के प्रधानमंत्री कयरियाकोस मितसोतकिस से मिले और आर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पासिन्यां से मिले और इन तीनों को ही भारत का दोस्त बताकर अपना समर्थन जताया।

यहाँ पर समझने वाली बात यह है कि ग्रीस सायप्रस का सबसे अच्छा मित्र है और सायप्रस के लिए ग्रीस ने तुर्की से युद्ध तक किया था, इसके अलावा जब प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो तुर्की, सायप्रस, ग्रीस, आर्मेनिया इन सभी पर ऑटोमन साम्राज्य का शासन था इस दौरान तुर्की ने 1915 में आर्मेनिया के 20 लाख में से लगभग 17 लाख ईसाइयों को मौत के घाट उतार दिया था क्योंकि आर्मेनिया के लोगों ने विश्वयुद्ध में ऑटोमन मुस्लिम साम्राज्य की जगह ब्रिटेन का साथ देने का ऐलान किया था। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि उन्हें एक साथ मेसोपोटामिया के रेगिस्तान में भूखे और नंगे छोड़कर, मृत सागर में डुबाकर, चौक में जलाकर एवं ज़हर व शरीर काटकर हज़ारों-हज़ारों को एक साथ मार दिया गया, इसे आर्मेनियन नरसंहार के नाम से जाना जाता है। जब यह सब खत्म हुआ तब तक सिर्फ 3 लाख ही आर्मेनियन बचे। इसलिए मोदी जी इन तीनों ही राष्ट्राध्यक्ष से एक साथ मिलकर तुर्की को कश्मीर के मामले में टांग अड़ाने के लिए कड़ा संदेश दिया है और मज़ेदार बात यह है कि तुर्की के नीति निर्माता मोदी की बजाय उल्टा अपने राष्ट्रपति रेसेप तैय्यब एर्दोगॉन की आलोचना कर रहे हैं, कि उस देश (पाकिस्तान) का पक्ष लेते हुए कश्मीर पर बोलने की क्या ज़रूरत है जो खुद दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है। मैं निजी तौर पर ऐसा समझता हूं, कि अगर अब तुर्की नही माना तो बहुत ही जल्दी हमारे राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री सायप्रस की यात्रा कर सकते हैं। तत्पश्चात मोदी अमेरिका को जवाब देने के लिए ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से मिले, पता नहीं इस मुलाक़ात को अमेरिका किस तरह लेगा, लेकिन फिर से यह मेरे निजी विचार हैं कि भारत को अब दोबारा ईरान से तेल ख़रीदने की शुरुआत करनी चाहिए। तीसरा जवाब चीन को दिया गया कि वह गिलगित-बाल्टिस्तान में बन रहे अपने गैरकानूनी सिपेक प्रोजेक्ट को तत्काल बंद करे। और चौथा जवाब मलेशिया को देना बाकी है क्योंकि कश्मीर के लिए सबसे कठोर वक्तव्य प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने ही कही, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में खड़े होकर सीधे सीधे भारत को कश्मीर में आक्रमणकारी कहा, और इजरायल को आधुनिक आतंकवादियों का देश। मुझे लगता है कि पाम ऑइल का आयात घटाकर हम मलेशिया को घुटने के बल ला सकते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की ने मिलकर इस्लामिक टीवी चैनल लॉन्च करने की घोषणा भी की है। हालांकि हमें जानना होगा कि ये सब हो रहा है राष्ट्रवाद के कारण – एर्दोगान, इमरान और महातिर तीनों ही अपने आप को पूरी दुनियां के मुस्लिमों का लीडर बनाने में लगे हुए हैं, इसलिये ऐसी बातें कह रहे हैं।

अंत में बस यही है कि कांग्रेस की तरह मैं भी यह मानता हूँ कि मोदी जी ने अबकी बार – ट्रम्प सरकार के ज़रिए डोनाल्ड ट्रम्प का चुनावी प्रचार किया, वहाँ की वॉल स्ट्रीट जर्नल और न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी इसे चुनावी तमाशा करार दिया है। क्योंकि अगर ट्रम्प पर महाभियोग लगा या 2020 में सरकार बदली तो भारत को यह समझना होगा कि अगली सरकार से हमारा संबंध कैसा होगा । लेकिन मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात से बहुत खुश हं और मेरे देश के लिए इसलिए इसे गौरव की बात मानता हूँ कि एक वह भी टाइम था जब इंदिरा गांधी के शासनकाल में 1966-69 तक अकाल पड़ा था तब अमेरिका ने पीएल-480 एग्रीमेंट के तहत भूखे भारतीयों को सड़ा हुआ गेहूं भेजा था और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की मदद के लिए यूएसएस एंटरप्राइजेज एयरक्राफ्ट कैरियर के नेतृत्व में अपना 7वां बेड़ा। और आज वो दिन है जब भारत का कोई नेता वहां जाकर उनकी धरती पर, उनके वोटर्स को हैक करके अपने पसंदीदा नेता को जिताने की बात कह रहा है, यह समझाने को काफी है कि नया भारत अब पहले जैसा नहीं रहा।

05 अक्टूबर 2019

@Published : Ambikavani Newspaper, 17 October 2019, Thursday, Ambikapur Edition, Page 02

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