इसे आप शुरुआत से समझिए अर्थव्यवस्था से लेकर राजनीति तक और कूटनीति से लेकर अफवाह तक ऐसा कुछ भी नहीं बचा, जो इसमें तबाह न हुआ हो। सिर्फ 2 महीनों में ही इस महामारी ने सभी की जिंदगी में भूचाल ला दिया है और विश्व की 7.7 अरब जनसंख्या हाहाकार में जी रही है। लेकिन जानने वाली बात यह है कि इतनी भयानक तबाही आयी कैसे। हालांकि यह कोई नया वायरस नहीं है जिसने 40 हजार जानें लेकर दुनियां में कोई उपलब्धि हासिल की हो, इससे पहले सदियों से चले आ रहे चेचक, पोलियो, हैजा, डायरिया, एचआईवी, इबोला, जीका वायरस, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू जैसी अनेकों महामारियां करोड़ों जाने ले चुकी है। इन सब में सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाला वायरस 1918 का स्पेनिश फ्लू था, इसने दुनियाभर में लगभग 5 करोड जानें ली थी। यह इनफ्लुएंजा वायरस एच1एन1 था जो 1920 तक चला था लेकिन इसे स्पेनिश फ्लू का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उस समय प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और ज्यादातर यूरोपीय देश मीडिया के द्वारा अपना अपना नैरेटिव सेट करने में लगे थे और इसे छुपाने की कोशिश कर रहे थे। उसी वक़्त स्पेन के राजा खुद इस वायरस से ग्रसित हो गए और उन्होंने ही इस महामारी के बारे में दुनियाभर को बताया इसलिए इसका नाम स्पेनिश फ्लू रख दिया गया। कहा जाता है कि यह वायरस अमेरिका के मध्य प्रांत से निकला था, और जब 1917 में अमेरिकी सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया, तब उनके द्वारा यह पूरे यूरोप में फैल गया।

 

इसी बीच महान उपन्यासकार डीन कुंट्ज द्वारा 1981 में लिखित द आइज ऑफ डार्कनेस किताब की बार-बार चर्चा हो रही है जिसके पेज नंबर 353-356 पर कहा गया है कि आने वाले समय में चीन वुहान-400 नामक बायोलॉजिकल हथियार बनाएगा जिससे वह अपने गरीब जनता को मार कर दुनिया में विकसित अर्थव्यवस्था बन सके। हम आगे बढ़ें उससे पहले ये बताना चाहूंगा कि डीन कुंट्स एक अमेरिकी लेखक हैं जो अपने रोमांच, रूहानी, डरावनी व काल्पनिक कहानियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं, और जिस वक़्त उन्होंने ये उपन्यास लिखा तब चीन भुखमरी में जी रहा था, वह उतनी बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं था कि अपने लोगों को मार दे और दुनियां के देश कुछ ना कहें। रही बात, वुहान-400 जैविक हथियार से अपने लोगों को मारने की, तो ये 2020 में नहीं, 2003 में ही किया का सकता था। क्योंकि कोरोनावायरस कोई नया वायरस नहीं है, यह सार्स यानी सिवीयर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम का नया रूप है जो 2002-03 में फैला था। उस वक़्त भी हजारों लोग मारे गए, लेकिन जैसे ही तापमान बढ़ा ये खत्म हो गया, महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उस वक़्त भी इसका कोई टीका मौजूद नहीं था। रही बात जैविक हथियार की, तो यह सच है कि हुबेई प्रांत के वुहान शहर में चाइनीज इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी मौजूद है जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वायरस पर रिसर्च होते हैं लेकिन यह अफवाह गलत है कि इसे चीन की पीपल लिबरेशन आर्मी ने लैब में इसे जैविक हथियार के रूप में विकसित किया है। हालांकि मैं इस बात से इत्तेफाक रखता हूं कि सभी देश अपने हित साधने के लिए ऐसे हथियारों को विकसित करने में लगे रहते हैं, ऐसे में सिर्फ चीन ही नहीं, अमेरिका, रूस, उत्तर कोरिया, ईरान, पाकिस्तान एवं भारत के पास भी ऐसे गुप्त हथियार होंगे। लेकिन इस परिदृश्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बयान जारी करके कहा है कि यह प्राकृतिक अवस्था से निकला वायरस है जो डाइल्यूट एवं म्यूटेट होकर और ज़्यादा प्रभावी हो गया है। डब्लयूएचओ ने इसे आधिकारिक रूप से सार्स-कोव-2 यानी नॉवेल कोविड2019 नाम दिया है। हाल ही में जारी हुई ब्लूमबर्ग रिपोर्ट के अनुसार इस कोरोना से वैश्विक अर्थव्यवस्था को $2.7 ट्रिलियन, ऑस्ट्रेलियन एक्सपर्ट्स के अनुसार $2.4 ट्रिलियन एवं यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम के अनुसार $2 ट्रिलियन का प्रत्यक्ष नुकसान होने की संभावना है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सिर्फ भारत को ही लॉकडाउन करने से $120 बिलियन यानी 9 लाख करोड़ ना प्रत्यक्ष नुकसान होगा, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था और निवेशकों को एक ही महीने में शेयर मार्केट में 54 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है, जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था तो 4 साल पीछे चला गया है जहां से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे अमेरिका फर्स्ट का नारा देकर बढ़ाने कि कोशिश की थी, इसके अलावा उन्होंने महामारी से निपटने के लिए $2 ट्रिलियन यानी 150 लाख करोड़ का पैकेज जारी किया है जो आधी दुनियां की अर्थव्यस्था से भी ज़्यादा है, लेकिन स्थिति ये है कि आज इसका सबसे ज़्यादा संक्रमण अमेरिका ही झेल रहा है।

आज दुनियाभर में 8 लाख से ज़्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं जिसमें सिर्फ चीन के गरीब ही नहीं, जैसा कि डीन कूंट्स ने कहा था, बल्कि इसमें ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, ब्रिटिश प्रिंस चार्ल्स, ईरान के उपराष्ट्रपति, सांस्कृतिक मंत्री, इंडस्ट्रीज मंत्री, उप स्वास्थ्य मंत्री सहित 27 ईरानी कैबिनेट के मंत्री इसमें शामिल हैं, साथ ही स्पेन की इक्वालिटी मिनिस्टर, ब्रिटेन की स्वास्थ्य मंत्री, ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्री, कनाडा के प्रधानमंत्री की पत्नी भी इस संक्रमण में शामिल हैं। इसी दौरान अमेरिका और चीन के मध्य मीडिया वॉर जारी है, राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है और उनकी पूरी कैबिनेट इसे चाइनीज वायरस कहकर बुलाते हैं लेकिन इसके जवाब में चाइना ने जो रणनीति बनाई उसने दुनिया भर में विश्लेषकों को विचलित कर दिया है। चीन ने कहा कि जब अमेरिकी सैनिक खेलों में भाग लेने के लिए वुहान आए थे तो उन्होंने इसे यहां फैला दिया। इसके पीछे तर्क देते हुए उन्होंने कहा है कि हाल ही में एक अमेरिकी सैनिक बीमार होकर मर गया, जिसपर बनाई गई कमेटी में संबंधित अधिकारियों से यह पूछा गया कि दुनिया की महाशक्ति और सबसे साधन संपन्न होने के बाद भी अमेरिका अपने हेल्थ ट्रीटमेंट के द्वारा उस सैनिक को क्यों नहीं बचा पाया। उसे हुआ क्या था, और क्या लक्षण के आधार पर उसका न्यूमोनिया टेस्ट हुआ था या नहीं। इसी कमेटी की जांच को आधार बनाकर चीन दुनियाभर में प्रोपेगंडा फैला रहा है कि यह वायरस चीन से जरूर फैला है लेकिन फैलाया अमेरिकी सेना के द्वारा गया है। हालांकि इसमें चीन की चाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि चीन ने जानबूझकर इस घटना पर पर्दा डाले रखा, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट न्यूज़पेपर के अनुसार 7 नवंबर को ही वुहान के झिंइशान अस्पताल में कोरोनावायरस का कन्फर्म केस मिल गया था, लेकिन उसने 8 जनवरी तक दुनियां से इसे छिपाए रखा, अन्यथा जो वायरस पूरी दुनियां तक पहुंच गया, वो चीन राजधानी बीजिंग और शंघाई, शेनजियांग, ग्वांगझू जैसे महानगरों तक कैसे नहीं पहुंच पाया, और तो और चीन ने डब्लयूएचओ में भी अपने प्रभाव का पूरा प्रयोग किया, जिसके कारण डब्लयूएचओ ने इसे चाइनीज या वुहान वायरस की जगह सार्स-कोव-2 नाम दिया, साथ ही दुनियां को चीन के फ्लाइट्स बंद ना करने के लिए कहा, जिससे डर ना फैले ना छवि खराब हो, और ना ही नस्लवाद उत्पन्न हो, ऐसी परिस्थिति में डब्लयूएचओ की कार्यशैली भी संदिग्ध बन गई है। इसी बात को आधार बनाकर अमेरिका के वकील लैरी क्लेमेन ने चीन पर भ्रामक जानकारी देने एवं छुपाने के एवज में टेक्सास के फेडरल कोर्ट में $20 ट्रिलियन का केस फाइल किया है, सोचिए इतनी रकम की तो चीनी अर्थव्यवस्था भी नहीं है। दूसरी ओर इटली के लोग भी चीन से युद्ध मुआवजा कि मांग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि हम बीमारी से नहीं बल्कि युद्ध से लड़ाई लड़ रहे हैं।

यहां पर पूरे प्रकरण के हीरो रहे डॉ. ली वेंलियांग को भी नहीं भुलाया जा सकता, जिन्होंने 30 दिसंबर 2019 को ही अपने वुहान यूनिवर्सिटी क्लीनिकल मेडिसिन 2004 नामक वीचैट ग्रुप में ये मेसेज डालकर सनसनी फैला दी कि सार्स वायरस के 7 कन्फर्म मरीज़ मिल चुके हैं। बस इतना पता लगते ही 3 जनवरी को चीनी आर्मी उन्हें उठाकर ले गई और अत्यधिक टॉर्चर किया, अन्ततः ली अब हमारे बीच नहीं रहे। दुनियाभर के देश और रिसर्चर चीन को कोस रहे हैं कि अपनी अर्थव्यवस्था और छवि बचाने के लिए उसने पूरी मानव जाति को दावं पर लगा दिया। इसमें वो वाइल्डलाइफ और वेट मीट प्रजातियां भी शामिल हैं जिसे खाने का चीन ने कल्चर बना लिया, उसे वो जिनबू कहते हैं और वेट मीट वो होते हैं जब किसी जानवर को तत्काल मारकर उसका ताज़ा मांस खाने और गर्म खून पिया जाता है, चूंकि 1980 में जब चीन भुखमरी में जी रहा था तब चीनी सरकार ने सांप, पेंगोलिन, चमगादड़, कुत्ते, चूहे, गधों को खाने की कानूनी मंजूरी दी थी ताकि चीनी पुरुषों में पुरूषार्थ और महिलाओं में लालिमा बढ़े, जिससे उनकी इम्यूनिटी और स्टेमिना बनी रहे। इतने साल हो जाने के बाद भी चीन ने इसे खत्म नहीं किया, जबकि 2002 में सार्स आने बाद से लेकर सार्स-2 आने के बीच दो अन्य वायरस एच5एन7 और एच7एन9 एवलिन फ्लू भी चीन में आ चुका है। आपको सबसे ज़्यादा आश्चर्य मेरी ये बात जानकर होगी, कि वन चाइल्ड पॉलिसी के दौरान जो महिलाएं दुबारा गर्भवती हो जाती थीं, उन्हें सज़ा से बचाने के लिए उनके भ्रूणों का सूप बनाकर वहां के मर्दों को सेक्स बढ़ाने के लिए पिलाया जाता था। इतना सबकुछ हो रहा था चीन में, फिर भी चीन ने अपने उस कानून को खत्म नहीं किया।

भारत के संदर्भ में बात करें तो फिलहाल हमने 35 दिनों तक पूरी दुनिया से अपने आप को काट लिया है और 21 दिनों के लिए एक दूसरे से। ये पहली बार है जब भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपदा अधिनियम 2005 को लागू कर पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया है, क्योंकि दुनियां कोरोना का रोना तो भोग ही रही है लेकिन लगभग 1600 भारतीय भी इससे पीड़ित हो चुके हैं। इसके अलावा भारत सरकार ने एपिडेमिक डिसीज़ेस एक्ट 1897 को भी लागू कर दिया है, जिसके तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार होगा कि वह नागरिकों कि सुरक्षा के लिए कोई भी कदम उठा सकते हैं, चाहे वो कर्फ्यू हो या आपातकाल। भारत के लिए ये अच्छी बात रही कि यहां संक्रमण अभी भी दूसरे चरण से आगे नहीं बढ़ पाया है, जबकि देशों में इटली और शहरों में न्यूयॉर्क फिलहाल इस वायरस के केंद्र बने हुए हैं। अमेरिकी रिसर्चरों को यह आशंका है कि कोरोनावायरस का टीका बनने तक लगभग 22 लाख लोगों की मौत हो सकती है, इटली में तो अभी तक ही 12000 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, इसके पीछे का कारण यह रहा कि इन दोनों देशों ने इस वायरस के संदर्भ में लापरवाही बरती, जबकि इटली में इसलिए ज़्यादा मरे क्योंकि वहां की लाइफ एक्सपेक्टेंसी 82.5 वर्ष है और वहां बुजुर्गों कि संख्या ज़्यादा थी। फिलहाल इस संक्रमण से मरने से ज़्यादा स्वस्थ होने की संभावना बनी हुई है क्योंकि मरने कि दर सिर्फ 5 प्रतिशत है जबकि बचने कि लगभग 22 प्रतिशत। दो दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह घोषणा की है कि से कोशिश करेंगे कि मृत्यु के आंकड़े को 22 लाख से घटाकर 1 लाख तक ले आएं, इसके लिए अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग, जॉनसन एंड जॉनसन, जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और भारत की इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ दुनियां भर के संस्थान बहुत तेज़ी से टीका बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

 

उभरी समस्याओं के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर कोरोनावायरस के संबंध में दुनियां में दो प्रमुख सम्मेलन आयोजित हुए, पहला सार्क देशों के बीच, क्योंकि इस संघ देशों की प्रत्यक्ष सीमा भारत से लगती है, दूसरी विश्व के सबसे बड़े अर्थव्यस्था वाले जी20 समूह की, जहां पर सभी देशों ने 5 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 370 लाख करोड़ रुपए वायरस से लडने और अर्थव्यस्था में डालने का संकल्प लिया, साथ ही डब्लयूएचओ के एकतरफा निर्णय को भी संज्ञान में लेकर इसके पुनर्गठन पर चर्चा हुई। इन सबके बीच वैश्विक मंदी का आगमन हो चुका है और अनेकों देश आईएमएफ राहत पैकेज की भी मांग कर चुके हैं। इस घटना से आने वाले समय में बहुत कुछ बदल जाएगा, इसमें सबसे ज़्यादा खतरा भावनाओं को होगा, जैसे लोग अब ज़्यादा शाकाहारी होने लगेंगे, संयुक्त राष्ट्र को अब अपने लक्ष्य भी परिवर्तित करने पड़ेंगे, लोग अब हाथ मिलाने और गले लगने की प्रथा कम करके नमस्ते का चलन भी बढ़ाएंगे, जिसकी शुरुआत इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने की, और अनुसरण डोनाल्ड ट्रंप, इमानुएल मेक्रों, प्रिंस चार्ल्स ने किया। लेकिन अंतिम और सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोई भी देश इसकी जिम्मेदारी क्यों नहीं लेना चाहता और अगर वैक्सीन आने में अभी कम से कम 18 महीनों का वक़्त लगेगा, तब तक इस महामारी से यह दुनिया कैसे सुरक्षित होगी। इस सबके बीच सरकारें कूटनीति ही नहीं बल्कि राजनीतिक रोटियां सेकने में भी लगी हैं। दुनियाभर के देश इस संक्रमण को महामारी बताकर अपने यहां होने वाले विरोध प्रदर्शनों और अपने प्रतिद्वंद्वियों को दबा रहे हैं, और दूसरी ओर हजारों स्वस्थ जिंदगियों को हाई रिस्क में डालकर उनपर प्रयोग कर जल्दी से जल्दी टीका बनाया जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि दुनियां इस नुकसान के लिए चीन को क्या सज़ा देगी, जिसने संक्रमण दुनियाभर में फैला दिया, जो अभी और लाखों जानें लेगा, साथ ही इसने अर्थव्यस्थाओं को तो मंदी कि ओर धकेल ही दिया है, क्योंकि अभी ही तो असली खेल बाकी है, जब संक्रमितों के मौत का तांडव दुनियां देखेगी। हम यह भी देखेंगे कि क्या ट्रंप दुबारा राष्ट्रपति बन पाएंगे जिससे वो चीन को सबक सिखा सकें, या असीमित कार्यकाल पाने वाले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को वहां की कम्यूनिस्ट पार्टी क्या दुबारा राष्ट्रपति बनाएगी जिनकी नीति ने चीन को विश्वभर में बदनाम कर दिया, और क्या चीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से बाहर निकाला जा सकेगा, या विश्व के देश अब ताइवान से कैसे रिश्ते बनाएंगे। इन सब के बीच इंतजार रहेगा कि दुनियाभर के कितने लोग खुद को आइसोलेट रखकर सबको सुरक्षित रख सकेंगे।

01 अप्रैल 2020

@Published :
1. NavPradesh_Newspaper, 04 April 2020, Saturday, #Raipur, #Bhopal & #Ranchi Edition, Page 04 (Editorial) 
2. The_Pioneer Newspaper, 02 April 2020, Thrusday, #Raipur hindi edition, Page 06 (Editorial) _ _ _ _ _ _ _ _

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