ये बहुत ही आश्चर्य की बात है कि हम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी हैं, लेकिन इस जनसंख्या की अप्रत्याशित ताकत का अहसास जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से पहले ना तो सरकार को पता थी और ना ही विदेश नीति निर्धारकों को, क्योंकि दुनियाभर के देशों का ध्यान आकर्षित करने वाले कड़े फैसले देश में बहुत कम ही आए हैं। इसलिए तो देश का बहुसंख्यक समाज और खुद प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से जनसंख्या विस्फोट को लेकर अपनी संवेदना व्यक्त की थी, तब जाकर लगा था कि निश्चित ही भारतीय सरकार जनसंख्या विस्फोट से उपजे गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अशिक्षा, असमानता इत्यादि को लेकर कोई स्पष्ट नीति बनाएगी, जिसे उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल करके रखा हुआ है। इसी कार्य को आगे बढ़ाते हुए असम की सरकार, दो कदम और आगे बढ़ गई और उसने सिर्फ शिक्षा एवं नौकरी ही नहीं, बल्कि समस्त सरकारी योजनाओं के लाभ पाने वालों के लिए यह जनसंख्या नीति तैयार कर ली है जिसे सम्भवतः अगले विधानसभा सत्र में पेश करके पारित किया जाएगा।

लेकिन मसला यह है कि अब यही जनसंख्या भारत की विदेश नीति का प्रमुख हथियार बन गया है। हालांकि यह प्रश्न मन में आना स्वाभाविक है कि कैसे अपनी जनसंख्या को हमने हमारा हथियार बना लिया और पहले की सरकारों ने प्राथमिकता के आधार पर इसे अपने विदेश नीति में क्यों शामिल नहीं किया था। इसके मुख्य रूप से दो कारण हैं पहला, मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यस्था के बुरे हाल के दौरान भी बढ़ता व्यापार घाटा; दूसरा, भारत की सॉफ्ट पॉवर छवि। आप इसे ऐसे समझिए कि विश्वभर में सबसे ज़्यादा प्रवासी भारतीय मूल के हैं, ऐसे में वो जिस जिस देश में जाएंगे वहां भारतीय संस्कृति, खान पान, त्यौहार, और मुख्य रूप से आयुर्वेद, योग एवं बॉलीवुड का प्रसार होगा ही।

अब हम वापस अपने शीर्षक पर आते हैं कि किस तरह मोदी सरकार ने भारतीय जनसंख्या को अपनी विदेश नीति का हथियार बना लिया है और कैसे सरकार इसकी मदद से कूटनीति, अर्थव्यवस्था, रक्षा एवं सबसे महत्वपूर्ण बाजार को साध रही है। इसकी शुरुआत मलेशिया से की गई जब वहां के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत को कश्मीर में कब्जा करने वाला बताया था, तब भारत ने तो आधिकारिक तौर पर सिर्फ मलेशिया के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करने की बात कही, लेकिन भारतीय आयतकों ने तो सरकार से भी आगे जाते हुए पॉम ऑयल की आयात रोक देने का फैसला कर लिया। इतना होते ही मलेशिया की सरकार के हाथ पैर फूल गए क्योंकि उसे एशिया का सबसे बड़ा बाज़ार और अपने पॉम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक देश दूर जाता नजर आया। सबसे बड़ा देश इसलिए क्योंकि चीन से तो ये खुद ज़्यादातर आयात करते हैं तो उसे निर्यात के लिए भारत जितनी जनसंख्या कहां मिलेगी। इस तरह 135 करोड़ जनसंख्या ने मलेशिया के पसीने छुड़ा दिए। ये सब देखकर भारत को अपनी जनसंख्या की ताकत का अहसास हुआ। हालांकि ऐसा नहीं है कि हमारे कारोबारियों एवं देश के नागरिकों ने ऐसे फैसले पहले नहीं लिए हैं, चीनी सामान को लेकर हम हर साल पुतला जलाते हैं लेकिन दुर्भाग्य ही कहिये की ये फैसले चीन को थोड़ा भी नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे क्योंकि आज घर घर में चीनी सामान भरा पड़ा है, इसलिए सरकार ने भी इस ताकत को अब तक नहीं समझा था।

अब इसके बाद भारत ने अपने जनसंख्या की आड़ में जो सबसे बड़ा फैसला लिया उसने एक साथ 15 देशों के पसीने छुड़ा दिए और 7 सालों की मेहनत पर पानी फेर दिया। वह फैसला था आरसीईपी यानी क्षेत्रीय व्यापार सहयोग संगठन से बाहर निकालने का। जहां पर भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने देश के आखिरी व्यक्ति तक फायदा ना पहुंचने कि बात कहकर अपनी 135 करोड़ को इस मुक्त व्यापार समझौते से बाहर निकाल लिया। वहां रहे किसी भी देश ने अपने हांथों से इतनी बड़ी जनसंख्या को दूर जाते देखने की तनिक भी उम्मीद नहीं की थी। अन्ततः चीन व ऑस्ट्रेलिया ने फिर से भारत की अद्भुत जनसंख्या को शामिल करने के लिए भारत चिंताओं पर बात करने की बात कही है। तत्पश्चात भारत ने अमेरिका को भी अपनी जनसंख्या की ताकत का अहसास दिलाते हुए, आगे से भारत पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह के प्रतिबंध लगाने से पहले उसके विपरीत अंजाम को भी सोच लेने की चेतावनी दे दी है साथ ही ब्रिक्स देशों और यूरोप को भी यह संदेश पहुंचा दिया है कि अगर भारत के बाज़ार तक पहुंच पाने की कोशिश करनी है तो भारतीय सरकार एवं विश्व पटल इस हमारी कूटनीति पर भी परस्पर सहयोग करना होगा। इस तरह सरकार ने खुलकर और बेबाकी से अपने समकक्ष सरकार के सामने भारतीय जनसंख्या को विदेश नीति का अपेक्षित हथियार बनाकर संबंध प्रगाढ़ या समीक्षा करने की नीति अपना ली है। हालांकि सरकार बनने के सिर्फ 6 महीनों के भीतर देश के नागरिक पैसे नहीं होने के कारण जिस तरह से सामान नहीं खरीद पा रहे हैं, युवा बेरोज़गारी और शिक्षा के लिए संसद तक प्रदर्शन कर रहे हैं, अर्थव्यवस्था जिस हाल और मंदी के दौर से गुजर रही है, उस स्थिति में सरकार को विदेश नीति से हटकर देश को सशक्त बनाने वाली नीति को हथियार बनाना चाहिए ताकि ऐसे फैसलों के लिए सरकार को बाहर बाद में, स्वयं अपने ही देश विरोध का सामना ना करना पड़े, जब दुनियाभर में राजनीतिक आजादी के लिए घमासान और भ्रष्टाचार में लिप्त अर्थव्यवस्था के लिए प्रदर्शन हो रहे हों।

09 दिसम्बर 2019

@Published :

  1. DopaharMetro Newspaper, 02 December 2019, Monday, #Bhopal Edition, Page 04 (Editorial) _ _ _ _ _ _ (Facebook Link)
  2. AmritSandesh Newspaper, 01 December 2019, Sunday, Published in All Editions of #Chhattisgarh in Sunday special, Front Page.

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