एक समय था जब जापान और उसकी इंपीरियल आर्मी दुनियां की सबसे घातक सेना हुआ करती थी जिसमें निंजा तकनीक से लैस लड़ाके अपने साम्राज्य की समृद्धि के लिए लड़ते थे, इसी के दम पर उन्होंने न सिर्फ रूस और चीन जैसे बड़े देशों को हराया बल्कि प्रशांत महासागर से लेकर हिन्द महासागर में अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह तक कब्ज़ा कर लिया था। इसकी शक्ति का अंदाजा इस तरह लगाया जा सकता है कि विश्व युद्ध के दौरान आखिरी तक लड़ने वाला देश जापान ही था। इसी तरह दक्षिण कोरिया भी महान परंपरा वाला देश रहा जिसने अनेकों युद्ध लड़े लेकिन अपनी संस्कृति पर किसी को हावी नहीं होने दिया। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक ऐसा मोड़ आया जिसने अनेकों देशों बर्बाद कर दिया और अनेकों देशों को नया जन्म दिया जिसमें भारत भी शामिल है। इसी दशक ने जापान और दक्षिण कोरिया जैसे दोनों प्रमुख देशों को सुरक्षा के लिए अमेरिका का कठपुतली बना कर रख दिया क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध में हार के बाद जापान को सेना बढ़ाने वह किसी प्रकार की हथियार विकसित करने पर पाबंदी लगा दी गई और दक्षिण कोरिया को अमेरिका ने अपने हिस्से में कर लिया। अब ये वो देश हैं जिन्हें छः दशकों से अमेरिका की सैन्य सुरक्षा और न्यूक्लियर अंब्रेला की सुविधाएं मिल रही हैं, ताकि इन दोनों के मुख्य प्रतिद्वंदी चीन एवं उत्तर कोरिया से इन्हें बचाया का सके। ट्रीटी ऑफ म्यूचुअल कोऑपरेशन एंड सिक्योरिटी नाम का समझौता जापान के साथ 1951 में किया गया जो कुछ संशोधनों के साथ 1960 से निरंतर लागू है। साथ ही म्यूचुअल डिफेंस ट्रीटी दक्षिण कोरिया के साथ 1953 में किया गया, जिसका अर्थ है कि इन देशों पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। तत्पश्चात अमेरिका स्वतः ही युद्ध में शामिल हो जाएगा। इस समझौते में परमाणु हमला से सुरक्षा भी शामिल है। हालांकि ये दोनों देश अमेरिका को इस सुरक्षा के एवज में बहुत बड़ी रकम भुगतान करते हैैं।
लेकिन वर्तमान परिदृश्य में आखिर क्या हो रहा है कि ये दोनों देश अपने सबसे निकटतम अमेरिका मित्र से दूर होते जा रहे हैं। इसके प्रमुख रूप से तीन कारण हैं; पहला, जापान व दक्षिण कोरिया के बीच द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानीज इंपीरियल आर्मी द्वारा कोरियाई लोगों के नरसंहार के कारण वर्तमान में उपजा मतभेद, दूसरा अमेरिका द्वारा इन दोनों देशों से सुरक्षा के नाम पर 400 गुना अधिक पैसों की मांग करना और तीसरा, दक्षिण कोरिया का अपने मुख्य प्रतिद्वंदी चीन से सुरक्षा समझौता करना। ये सब अभी कुछ महीनों पहले से ही हो रहा है लेकिन यह इतना बढ़ चुका है की नतीजा इस हद तक दिख रहा है वरना एक वह भी समय था जब 1949 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक दक्षिण कोरिया ने तो चीन को मान्यता तक ही नहीं दी थी वह सिर्फ रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान को ही असली चाइना मानता था इसका कारण था की 1950 से 53 तक चले कोरिया वॉर में चीन ने उत्तर कोरिया का साथ दिया था जिसे दक्षिण कोरिया के लोग कभी नहीं भुला पाए थे। अंततः पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता देने वाला दक्षिण कोरिया एशिया का आखरी देश था।
हालांकि यह सब होने का मुख्य कारण डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का लालचीपन है जिसकी वजह से हाल ही में अमेरिका की प्रतिष्ठित मीडिया समूह सीएनएन ने कहा कि दक्षिण कोरिया और जापान को लेकर ट्रंप ने बहुत बड़ी गलती कर दी है क्योंकि वह उन्हें सिर्फ एक छोटा देश मानकर अपनी सभी बातें कबूल करवा लेना चाहते थे, जबकि हर बार यह संभव नहीं। कुछ महीनों पहले डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया को अमेरिकी सुरक्षा के एवज में ज्यादा पैसे देने की मांग की थी जिसके बाद दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरिया और जापान से उपजे मतभेद के कारण $870 मिलियन की जगह $990 मिलियन सालाना देने का फैसला कर लिया जिसमें 28500 अमेरिकी सैनिकों का खानपान भी शामिल था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप इतने में ही नहीं माने और उन्होंने फिर ट्विटर पर अपने बड़बोलेपन के साथ यह लिख दिया की उत्तर कोरिया और चीन जैसे देशों से सुरक्षा की खातिर हम दक्षिण कोरिया को थाड़ एंटी मिसाइल सिस्टम, न्यूक्लियर अंब्रेला और पूरी सुरक्षा दे रहे हैं इसलिए उसके बदले दक्षिण कोरिया जो पैसे दे रहा है वह बहुत कम है इसलिए इसे कम से कम $4.7 बिलियन कर दिया जाना चाहिए और हम ऐसा उनसे लेकर रहेंगे। बस इतना सुनना कि दक्षिण कोरिया के नागरिकों का राष्ट्रवाद जाग गया, और एक सर्वे में 96 प्रतिशत लोगों ने अमेरिकी सुरक्षा को हटाकर खुद की आर्मी खड़ी करने की मांग सरकार से कर दी। जिसके परिणास्वरूप अब जाकर दक्षिण कोरिया ने अपने सबसे बड़े दुश्मन चीन से ही सुरक्षा समझौता कर लिया है हालांकि यह कोई म्यूच्यूअल कॉर्पोरेशन नहीं है सिर्फ एक रक्षा संबंध है लेकिन इससे यह अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है कि भविष्य में निश्चित रूप से दक्षिण कोरिया और चीन के बीच कोई बड़ी मिलिट्री एक्सरसाइज, रक्षा सामान की खरीदी भी होगी, हालांकि अभी उसमें बहुत समय है और यह भी उतना ही सही है कि अगर राष्ट्रपति ट्रंप दक्षिण कोरिया के अधिकारियों के साथ अगर बैक डोर से राशि बढ़ाने की मांग करते तो शायद कोई बीच का रास्ता निकल सकता था लेकिन उन्होंने जो ट्विटर नीति अपनाई है वह कई बार उनके अपने कैबिनेट को भी पता नहीं चल पाता।
राष्ट्रपति ट्रंप इतने में ही नहीं रुके उन्होंने अभी हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री को कहा है कि वह $2 बिलियन यानी 14000 करोड़ रुपए की जगह अमेरिका को $8 बिलियन यानी लगभग 55000 करोड़ रुपए सालाना भुगतान करें क्योंकि यह जापान में स्थित 56000 अमेरिकी सैनिकों के हिसाब से बहुत कम राशि है जिसे मार्च 2021 में रिन्यू किया जाना है। अब वहां के लोग भी डोनाल्ड ट्रंप की इस घोषणा से बहुत ज्यादा चिढ़ गए हैं और प्रतिबंधों को दरकिनार करके अत्याधुनिक तकनीकों से लैस मजबूत आर्मी और मिसाइल प्रौद्योगिकी विकसित करने की मांग अपने सरकार से कर रहे हैं ताकि खुद की सुरक्षा खुद से की जा सके। हालांकि दक्षिण कोरिया की तरह जापान चीन के साथ कोई रक्षा समझौता नहीं करने जा रहा है ना ही भारत को इस क्षेत्र ने कोई प्रत्यक्ष रूप से खतरा है लेकिन इन दोनों देशों में जो हो रहा है उसका असर निश्चित रूप से पूरे ईस्ट एशिया, भारत, अमेरिका और पूरी दुनिया में होगा। यह भारत के लिए चिंता की बात बस इसलिए है क्योंकि दक्षिण चीन सागर को लेकर जब पूरे आसियान देश चीन के साथ मतभेदों में है और भारत के करीब आ रहे हैं ऐसे में दक्षिण कोरिया का चीन के साथ रक्षा समझौता करना भारत के सामरिक महत्व को कम कर देगा।
हाल ही में भारत और जापान ने एक्विजिशन एंड क्रॉस सर्विसिंग एग्रीमेंट किया है जिसके तहत भारत और जापान अब एक दूसरे की सैन्य अड्डों की पहुंच पा सकते हैं यह समझौता लेमोआ की तरह ही होगा जिसका मतलब है कि जापान और भारत रक्षा क्षेत्र में और करीब आ गए हैं। बहरहाल मैं मानता हूं कि दक्षिण कोरिया का चीन के साथ किया गया समझौता निश्चित ही अमेरिका की नजर में भारत की इंपोर्टेंस कई गुना बढ़ा देगा क्योंकि हिन्द महासागर का नेतृत्व तो भारत कर है रहा है लेकिन प्रशांत महासागर में अमेरिका के करीबी साथी ऑस्ट्रेलिया और जापान, चीन की ट्रैप डिप्लोमेसी में फंस गए या रहे हैं। क्वाड समूह का सदस्य होने के बाद भी ऑस्ट्रेलिया, चीन नाराज़ ना हो जाए इसलिए इसके मिलिट्री एक्सरसाइज में भाग तक नहीं ले रहा और अब जापान भी अमेरिकी नीति से परेशान होकर अलग होने जा रहा है। इससे सिर्फ अमेरिका ही नहीं जापान एवं ऑस्ट्रेलिया भी अपने हितों की सुरक्षा के लिए भारत की तरफ रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ करेंगे।
26 नवम्बर 2019
@Published :
NavPradesh Newspaper, 28 November 2019, Thursday, #Raipur Edition, Page 04 (Editorial). https://www.navpradesh.com/epaper_pdf/epaper.php?date_id=28-11-2019
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