फिलहाल यह वो दौर हैं जब म्यांमार पूरी दुनिया में रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में अकेला पड़ चुका है। अमेरिका, यूरोपियन यूनियन के अलावा ना सिर्फ अधिकतर देशों ने म्यांमार के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं बल्कि उनके आर्मी चीफ मिन आंग हाइंग पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, और तो और 57 देशों वाले ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉर्पोरेशन ने संयुक्त राष्ट्र संघ की इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में रोहिंग्या नरसंहार के मामले में म्यांमार पर केस कर दिया है, फिलहाल जिसकी सुनवाई चल रही है, ऐसे समय में म्यांमार के राष्ट्रपति यू विन मियंट अपनी पत्नी और फर्स्ट लेडी डोव चो चो के साथ चार दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आए हैं। इससे एक हफ्ते पहले भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने 17 से 20 फरवरी तक म्यांमार का दौरे किया था, उनके दौरा का उद्देश्य भारत और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय समुद्री रिश्तों को और मजबूत बनाना था। गौरतलब है कि म्यांमार हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी यानी आईओएनएस का सदस्य है और आईओएनएस विनिर्माण के तहत आयोजित होने वाली गतिविधियों में हिस्सा लेता है। हाल ही में भारत और म्यांमार के संबंध व्यापार से कई कदम आगे बढ़ते हुए रक्षा तक पहुंच चुके हैं जिसमें म्यांमार को आईएनएस सिंधूवीर सबमरीन विक्रय भी शामिल है। इसके अलाना दोनों देशों की नौसेनाएं अन्य समुद्री गतिविधियों जैसे एडमिरल कप, मिलन अभ्यास और मैरीटाइम कॉन्क्लेव के जरिए एक दूसरे के साथ जुड़ी रहती है।

जब पूरी दुनियां से म्यांमार अलग थलग है ऐसे समय में भारत द्वारा म्यांमार को दबाव में लाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन भारत ने ना सिर्फ खुले दिल से उन्हें गले लगाया बल्कि अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नेबरहूड पॉलिसी के तहत म्यांमार का विकास करने की अपनी प्रतिबद्धता भी ज़ाहिर की। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब म्यांमार के राष्ट्रपति भारत आए हो इसे पहले भी वे प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हो चुके हैं। फिलहाल यह उनकी पहली अधिकारिक यात्रा थी जिसमें फर्स्ट लेडी भी शामिल थीं। इस यात्रा को भारतीय मीडिया में बहुत कवरेज मिला साथ ही भारत ने म्यांमार से 10 प्रमुख क्षेत्रों में समझौते भी किए जिससे इस अकेली परिस्थिति में म्यांमार का विकास सुनिश्चित किया जा सके क्योंकि उन समझौतों में ज़्यादातर विकास उस अशांत रखाइन प्रांत क्षेत्र से संबंधित है जिसकी वजह से म्यांमार अलग थलग है। यह वही प्रांत है जहां पर रोहिंग्या मुसलमानों का पूरा घटनाक्रम चला था।

हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी राजधानी नेपिडॉ पहुंचे थे, 19 साल बाद यह पहला मौक़ा था जब कोई चीनी राष्ट्रपति म्यांमार के दौरे पर आया। वैसे तो जिनपिंग दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ पर म्यांमार आए थे मगर इस यात्रा के दौरान उन्होंने स्टेट काउंसलर और शीर्ष नेता आंग सान सू की के साथ मिलकर चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के तहत कई परियोजनाओं को शुरू किया। यह गलियारा शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी बेल्ड एंड रोड अभियान का ही अंग है, जिसे भारत सशंकित निगाहों से देखता रहा है क्योंकि भारत मानता है कि इस अभियान के तहत चीन दक्षिण एशियाई देशों में अपना प्रभाव और पहुंच बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है। हालांकि युन्नान की प्रांतीय सरकार ने अपने स्तर पर म्यामांर के साथ 80 के दशक से ही अच्छे रिश्ते बनाने की शुरुआत कर दी थी, जिसके बाद 2010 से लेकर अब तक कई सारे बॉर्डर इकनॉमिक ज़ोन बनाए गए हैं। चीन के लिए भौगोलिक रूप से म्यांमार काफ़ी अहम है

क्योंकि म्यांमार ऐसी जगह पर स्थित है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच है और यह चारों ओर से ज़मीन से घिरे चीन के युन्नान प्रांत और हिंद महासागर के बीच पड़ता है इसलिए चीन काफ़ी सालों से कोशिश कर रहा है कि कैसे भी करके वह हिन्द महासागर तक पहुंचे। चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा अंग्रेज़ी के वाई अक्षर के आकार का एक कॉरिडोर है, इसके तहत चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग से म्यांमार के दो मुख्य आर्थिक केंद्रों को जोड़ने के लिए लगभग 1700 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर बनाया जाना है। कुनमिंग से आगे बढ़ने वाले इस प्रॉजेक्ट को पहले मध्य म्यांमार के मैंडले से हाई स्पीड ट्रेन से जोड़ा जाएगा फिर यहां से इसे पूर्व में यंगॉन और पश्चिम में क्यॉकप्यू स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन से जोड़ा जाएगा, साथ ही चीन क्यॉकप्यू में पोर्ट भी बनाएगा। इस अभियान के तहत म्यांमार की सरकार ने शान और कचिन राज्यों में तीन बॉर्डर इकनॉमिक कोऑपरेशन ज़ोन बनाने पर सहमति जताई थी।

इन्हीं क्रियाकलापों को देखते हुए, भारत चाहकर भी म्यांमार को खुद से दूर जाने नहीं दे सकता। ये अलग बात है कि नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश, पाकिस्तान की तरह म्यांमार भी चीनी कर्ज से दबा हुआ है और वे सभी चाहकर भी उससे बाहर नहीं निकल सकते, इन्हीं कर्ज़ों के दम पर चीन ने सभी भारतीय पड़ोसियों को अपने जाल में फंसा रखा है और भारत को घेरने में लगा है, इसलिए भारत ने म्यांमार को खुद से दूर रखने की बजाय आसियान देशों तक पहुंच बनाने के लिए इस देश को अपनी प्राथमिकताओं में रखा है। हालांकि यह जानकारी भी हैरान करती है कि पड़ोसी होने के बाद भी भारत एवं म्यांमार का द्वीपक्षीय व्यापार सिर्फ 1.7 बिलियन डॉलर है जबकि दूसरी ओर म्यांमार एवं चीन का व्यापार लगभग 19 बिलियन डालर। यह भारत से दस गुना अधिक है और इसी के दमपर चीन हमारे सभी पड़ोसियों को अपनी ओर करने में लगा है। भारत न सिर्फ म्यांमार की अहमियत समझता है बल्कि म्यांमार को आसियान देशों से जुड़ने का गेटवे बनाना चाहता है। इसलिए दोनों देशों के रिश्ते पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत हैं। हम व्यापार से दो कदम आगे बढ़ते हुए आज मिलिट्री एक्सरसाइज तक से लेकर रक्षा सौदे तक पहुंच आए हैं, इससे पहले किसी भारतीय पड़ोसी देश को इतनी अहमियत नहीं मिली थी।

हाल ही में खबर आई थी कि भारत जल्द ही म्यांमार के सितवे बंदरगाह का संचालन अपने हाथों में ले लेगा जिसे भारत ने ही विकसित किया है। यह भारत एवं म्यांमार के बीच बनने वाले उस कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट कॉरिडोर का हिस्सा है जिसके तहत जहाज़ कोलकाता के समुद्री मार्ग से शुरू होकर यह रखाइन प्रांत के सितवे बंदरगाह तक जाएगा, उसके बाद कलादान नदी से होते पलेट्वा शहर तक पहुंचेगा। यहां पर भारत 1600 करोड़ रुपए में 129 किमी हाईवे का निर्माण भी कर रहा है जो की पलेट्वा को मिजोरम से जोड़ेगा, इस तरह उत्तर-पूर्व भारत तक पहुंचने के लिए हमें एक वैकल्पिक रास्ता मिल जाएगा, यह परियोजना सिलीगुड़ी कॉरिडोर और चिकन नेक पर भारत की निर्भरता को बहुत हद तक काम कर देगा। इसके अलावा भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच एक ट्राईलेटरल हाईवे पर भी काम कर रहा है जिसके तहत नॉर्थ ईस्ट राज्य मणिपुर की राजधानी इंफाल को सड़क मार्ग से म्यांमार के मेंडले से होते हुए थाईलैंड के माय सोत तक जोड़ेगा। हाल ही में इंफाल और मेंडले के बीच एक प्राइवेट यात्री हवाई सेवा के अलावा बिम्सटेक देशों के बीच 3000 किलोमीटर लंबी पावर ग्रिड बनाने  पर भी रजामंदी हुई है जिसके तहत म्यानमार को इससे जोड़ कर इसे आसियान देशों तक फैलाया जाएगा। इन परियोजनाओं से दोनों देशों के रिश्तों में अप्रत्याशित मजबूती आई है और इन यह पूरा होने के बाद निश्चित ही भारत अगले दशक में न सिर्फ आसियान देशों बल्कि ईस्ट एशिया से भी जुड़ चुका होगा।

दिलचस्प बात यह है कि भारत का कलादान प्रोजेक्ट म्यांमार के अशांत रखाइन प्रांत से ही होकर गुजरता है इसलिए भारत ने अपने हितों को आगे रखते हुए उन दस समझौतों में से ज्यादातर समझौते सिर्फ रखाइन प्रांत के लिए किया है, जिसमें भारत रखाइन राज्य विकास परियोजना के अन्तर्गत मरौक-यू शहर में हॉस्पिटल, बीज भंडारण गृह और ग्वा शहर में वाटर सप्लाई यूनिट सिस्टम बनाएगा। इसी योजना के तहत भारत रखाइन राज्य के 5 शहरों में सोलर पावर से बिजली भी प्रदान करेगा तथा बुथेडौंग शहर में क्याऊंग-ताऊंग-क्याव पाउंग रोड एवं क्याव लयाऊंग-ओल्फ्यू रोड का पुनर्निर्माण कराएगा। इन सब के अलावा भारत प्राथमिक स्कूल, रिलीफ़ और सेटलमेंट प्रोग्राम भी चलाएगा ताकि वहां के बेघर और अशिक्षित लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके। इन समझौतों के अलावा भारत ने सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी का उपयोग करते हुए ह्यूमन ट्रैफिकिंग, टिंबर ट्रैफिकिंग को रोकने, वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन और बाघों की सुरक्षा करने के अलावा भारत ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और एनर्जी सेक्टर को भी समझौते में शामिल किया है। ताकि म्यांमार में श्रीलंका और मालदीव की तरह चीन का प्रभाव कम किया जा सके। इसके लिए भारत पहले ही म्यांमार को लगभग 2 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट लोन दे चुका है। लेकिन जानने वाली बात यह है कि भारत रखाइन प्रांत में इतना विकास क्यों चाहता है। कारण यह है कि कलादान प्रोजेक्ट के अन्तर्गत सितवे पोर्ट इसी प्रांत में पड़ता है और यहां की अराकन मिलिटेंट आर्मी जो कि रोहिंग्या मुसलमानों का उग्रवादी संगठन है, वो इस परियोजना को नुकसान पहुंचाते हुए इसे बंद कराना चाहते हैं इसलिए भारत रखाइन क्षेत्र का विकास करके अप्रत्यक्ष रूप से अपने हित साध रहा है और भारत में बसे हुए रोहिंग्याओं को भी वापस नहीं निकाल रहा है। उम्मीद है कलादान प्रोजेक्ट को भविष्य में इंडिया म्यांमार थाईलैंड ट्रायलेटरल हाईवे के मेंडले से भी जोड़ा जा सकेगा।

09 मार्च 2020

@Published :

#The_Pioneer Newspaper, 10 February 2020, Tuesday, #Raipur Edition, Page 06 (Editorial) 

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